Saturday, June 7, 2008

लोकतंत्र के पथ पर लेटी

- कुमार शैलेन्द्र

संसृति शक्ति स्रोत जननी
सोलह श्रृंगार करो।।

लाल हुई
सोने की चिड़िया,
संस्कृति की डाली,
तीली जली, धुंध उपवन में-
छद्नवेश माली,

तृण-तृण में पागल मन हर क्षण
सागर-सागर भरो।।

साजिश बर्फीली
घाटी में,
भीषण आगजनी,
लोकतंत्र के पथ पर लेटी-
सुरसा नागफनी,

फन विषधर के कुचलो, युग-
चेतन संचार करो।

पंजों में
फिर दु:शासन के
यह आंचल धानी,
छलके नयनों से करुणामय-
क्षार युक्त पानी,

गरजो पांचजन्य, प्रत्यंचा-
नव टंकार करो।

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