Thursday, June 5, 2008

महंगाई की आग में तेल


महंगाई ने खींच दी अबकी सबकी चूल।
मोहन-मुरली सोनिया बोने लगे बबूल।।

बोतल में जो बन्द था, राजनीति का जिन्न।
बैल मुझे आ मार ले जनता है अब खिन्न।।

दाम बढ़ाकर तेल का ले ली आफत मोल।
न्यौता पूर्ण विपक्ष को चल अब हल्ला बोल।।

डीजल औ' पेट्रोल से इतने गहरे घाव।
गली-गली ललकारती, जल्दी करो चुनाव।।

चौपटराजा राज में इतना बढ़ा अंधेर।
भेड़ बकरियां गुम हुईं कातिल हुआ गंड़ेर।।

खून, तेल से मांगती मनमोहन सरकार।
और अंतड़ियां भूख से रोतीं बुक्का फार।।

छुटभैयों जितना करो धरने औ' हड़ताल।
करवट बदले ऊँट क्या, इतना खस्ताहाल।।

देश बचाओ दोस्तों कांग्रेस कंगाल।
फिर अच्छे दिन आएंगे, होंगे मालामाल।।

दिल्ली की सरकार ने भेजा फौरन फैक्स।
मुख्यमंत्रियों तेल पर नहीं मांगना टैक्स।।


रोटी के लाले पड़े, खाली है अब ज़ेब।
गैस तेल के नाम पर होता रहा फ़रेब।।

खाद्य पदार्थों में लगी आग, आग बाज़ार।
बस्ती-बस्ती धधकती मचती हाहाकार।।

सभी चमेली चाचियां, दस जनपथ से दूर।
रोटी-सी जलने लगी, मस्त रहा तंदूर।।

तेल मूल्य की वृद्धि से इतना तो है साफ।
जनता भारत की उन्हें नहीं करेगी माफ।।

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