अमेरिकन शासन-पद्धति के प्रभाव से ही सही मगर बीजेपी के पीएम-इन-वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी ने दूरदर्शन पर कांग्रेस को राष्ट्रीय बहस में शामिल होने की चुनौती देकर देश में स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना के निमित्त एक स्वस्थ एवं सार्थक पहल की है। लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले देश के लाखों प्रबुद्ध मतदाताओं द्वारा ऐसी किसी भी पहल का स्वागत होना चाहिए जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना का स्वस्थ वातावरण तैयार होता हो। बात यदि अच्छी है तो उसका समर्थन करना भी राष्ट्रहित है।
सिर्फ राजनीतिक पूर्वाग्रहों के चलते ऐसे सार्थक मुद्दों का विरोध बचकानापन है। इस बात में कोई बुराई नहीं है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर राष्ट्रीय दलों की विचारधाराएं बहस के जरिए आम जनता तक पहुंचे। ऐसे भोंडे तर्क प्रस्तुत करना कि बहुदलीय व्यवस्था वाले लोकतांत्रिक शासन-पद्धति में ऐसी बहस अव्यावहारिक है, यह तो सिर्फ भीड़तंत्र को बेवकूफ बनाना है। राजनैतिक दलों को अपनी नीतियों और एजेंडों को लागू कराने की स्पष्ट वचनबद्धता और जनता को विश्वास में लेने का यह सर्वोत्तम तरीका है। विश्वास करना चाहिए कि लोकतंत्र के प्रति आस्था और जन-जागृति की कोई भी सार्थक पहल देश को तीव्र विकास के पथ पर अग्रसर करेगी। साथ ही वैश्विक मंच पर भारत राष्ट्र की छवि भी निखरेगी। मेरा मानना है कि यह पहले देश की जनता की आकांक्षाओं के अनुरुप है। इस पहल के विरुद्ध उभरते स्वर एकांगी और पूर्वाग्रह के सिवा कुछ भी नहीं।
Sunday, March 29, 2009
Thursday, January 8, 2009
'कमसारनामा' का लोकार्पण
ज़मानियां तहसील अंतर्गत एस.के.बी.एम. इंटर कॉलेज,दिलदारनगर में कार्यरत रेवतीपुर निवासी विज्ञान शिक्षक सुहैल खां द्वारा लिखित पुस्तक 'कमसारनामा' का लोकार्पण पिछले दिनों बारा गांव निवासी मोहम्मद अशफाक खां (सामाजिक कार्यकर्ता- मुंबई ह्यूमन रेज सोसाइटी)द्वारा किया गया। कमसारनामा औरंगजेब के शासन-काल में धर्मांतरण कर इस्लाम अपनाने वाले गाजीपुर के सीकरवार वंश के राजपूतों-भूमिहारों का एक दस्तावेज़ है। साथ ही लगभग 600 पृष्ठों की इस पुस्तक में कमसार के 18 गांवों के धर्मांतरित पठानों का एक शज़रा(वंशवृक्ष) प्रस्तुत किया गया है। कमसारनामा संभवतः कामेश्वर मिश्र(कमेसराडीह) के वंशजों-भूमिहारों,राजपूतों और पठानों के मुगलकालीन त्रिकोणीय संबंधों एवं कमसार की ही महान विभूतियों का एक जीता-जागता दस्तावेज है। लेखक के कई वर्षों के अथक प्रयासों और शोध के बाद यह पुस्तक प्रकाशित हुई है। उक्त पुस्तक कमसार की नई पीढ़ी के लिए सिर्फ रोचक ही नहीं अपितु काफी ज्ञानवर्धक भी है। गाजीपुर के इतिहास में कमसारनामा की भूमिका अहम सिद्ध होगी, जिसके लिए लेखक सुहैल खां बेशक बधाई के पात्र हैं।
Wednesday, January 7, 2009
क्योंकि सज्जाद मीर दीपक चौरसिया नहीं हैं...उर्फ बेनकाब पाक मीडिया !
स्टार न्यूज़ के पत्रकार दीपक चौरसिया से आज ही पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार सज्जाद मीर से हो रही टेलीफोन वार्ता सुनी, विषय था - एनएसए महमूद अली दुर्रानी को पाक के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी द्वारा बर्खास्त किया जाना। उन्होंने भारतीय मीडिया से मुंबई के आतंकी अजमल आमिर कसाब के पाकिस्तानी नागरिक होने की पूरी संभावना जताई थी। भारत के कूटनीतिक कोशिशों की कामयाबी से दुनिया के सामने बेपर्दा और बेबस पाकिस्तान सरकार और आतंकी मानसिकता से ग्रस्त पाक जनता इतनी तिलमिलाई हुई है कि आम और खास का फर्क साफ नजर आने लगा है। दीपक चौरसिया के सवालों के जवाब में निष्पक्ष और सम्मानित कहे जाने वाले पाकिस्तान के तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार सज्जाद मीर की झुंझलाहट भरी भाषा से साफ लग रहा था कि स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के नाम को कलंकित करने वाले ऐसे पत्रकार पाकिस्तान में वास्तविक लोकतंत्र कभी स्थापित नहीं होने देंगे। ऐसे में पाकिस्तान के चौथे स्तंभ की भूमिका मात्र हास्यास्पद ही नहीं बल्कि पत्रकार बिरादरी की सोच को शर्मसार करने वाली है, जिसे पत्रकारिता जगत का सामान्य शिष्टाचार तक नहीं पता हो। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय, जांच अधिकारियों और सूचना मंत्री शेरी रहमान की स्वीकारोक्ति के बावजूद किसी पत्रकार का ऐसा अनर्गल प्रलाप पाकिस्तान की पत्रकारिता पर ढेर सारे सवाल खड़े करता है। सज्जाद मीर के पूर्वाग्रहपूर्ण बयानों से पाक की घृणित मानसिकता उजागर होती है। उनका सफेद झूठ पत्रकारिता पर काला धब्बा स्टैंप कर देता है, जब वह यह कहते हों कि ........पता नहीं कसाब को नेपाल से पकड़ा गया हो। यहां तक कि वह पत्रकार दीपक चौरसिया से एक अत्यंत तुच्छ आदमी की तरह तू-तू मैं-मैं पर उतारु हो जाए और कहे कि.....आप वार मांगरिंग कम करिए....और इसके बाद फोन बीच में ही पटक कर रख देता हो। जनाब, इससे साफ है आतंकवाद का समर्थक पाकिस्तान का चौथा स्तंभ भी अपनी असंयमित भाषा के प्रलोभन से आग में सिर्फ घी डालने का ही काम नहीं कर रहा, बल्कि अनजाने में ही पाक को आग में झोंक रहा है। साथ ही पत्रकारिता की पवित्रता को भी कलंकित कर रहा है। लानत है पाक के ऐसे नापाक चौथे स्तंभ पर। अगर ऐसा ही रहा तो पाकिस्तान में स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना में तो सदियां गुजर जाएंगी।
Monday, January 5, 2009
मजाक नहीं है, आतंकवाद का खात्मा !
“आइने से मुकर गए साहब,
बात क्या थी कि डर गए साहब।
आप अब भी हमारे सर पर हैं,
सिर्फ नजरों से उतर गए साहब।। ”
स्व. जय प्रकाश बागी (वाराणसी) की उपरोक्त पंक्तियों को व्यक्ति, समूह, समुदाय, समाज, देश एवं राष्ट्र अथवा किन्ही अन्य संदर्भों के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा सकता है। प्रासंगिक है कि नववर्ष 2009 के पहले दिन से ही जम्मू कश्मीर के मेंढर में आतंकवादियों द्वारा बंकरों से आतंक का आग उगलना। कारगिल-2 की पुनरावृत्ति का एक कुत्सित प्रयास जारी है। 26/11 की आतंकवादी घटना ने संपूर्ण देश को हिलाकर रख दिया है। इसमें पाकिस्तान की घिनौनी भूमिका सिद्ध होने के बावजूद उसकी बेशर्मी और बेहयाई से सारी दुनिया हतप्रभ है। अंतरराष्ट्रीय दबावों को ताक पर रखते हुए पाकिस्तान अपनी फौज को भारतीय सीमाओं पर तैनात कर उल्टा चोर कोतवाल को डांटे कहावत को चरितार्थ करने पर तुला है। वर्तमान भारतीय सरकार अपनी एड़ी चोटी एक करके भारतीय जनता के समक्ष अपनी विश्वसनीयता का परचम लहराने पर आमादा अवश्य दीखती है किन्तु उसके द्वारा पाकिस्तान को मजबूर कर अपना दोष कबूल कर गुनहगारों को दंडित करा पाना संदेहास्पद ही दीखता है। चुनावी वर्ष में कांग्रेस की गिरती हुई साख को रोकने का चमत्कारिक प्रयास संभव नहीं दीखता।
मेरी समझ में इतने विशाल लोकतांत्रिक देश को प्रगति और विकास के मार्ग पर ले जाने अथवा किसी भी संगीन समस्या से निजात दिलाने से पूर्व देश के प्रत्येक नागरिक और नागरिकों की सुरक्षा की गारंटी लेने वाली सरकार का नैतिक दायित्व बनता है कि वो आत्मनिरीक्षण करे और अपने दोष को देखे कि क्या वो भ्रष्टाचार के विनाश के अभाव में देश के समुचित विकास हेतु आतंकवाद समाप्त करवा पाने में सक्षम है ?
जी कत्तई नहीं! हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार का जिस कदर प्रवेश हो चुका है, उससे समस्याओं से निजात पाना बड़ा मुश्किल है। भ्रष्टाचार देश की सभी समस्याओं की जड़ में है। आतंकवाद का भयानक स्वरुप भी उसी भ्रष्टाचार के कारण है क्योंकि हमारी सरकारें भ्रष्टाचार की पूरी गिरफ्त में हैं। वर्तमान सरकार भी उसका अपवाद नहीं है। आतंकवाद का घिनौना खेल तब तक चलता रहेगा, जब तक राजनेताओं द्वारा देश में कुर्सी पाने और देश पर राज करने में भ्रष्टाचार का खेल खेला जाता रहेगा। यकीन मानिए, बगैर भ्रष्टाचार मिटाए आतंकवाद नहीं मिटाया जा सकता और न तो गरीबी ही मिटाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट की मानें तो सच है कि देश भगवान भरोसे चल रहा है। पिस तो रही है आम जनता, भ्रष्टाचारी फूल-फल रहा है। सरकार जनता के सिर पर उठी हुई दिखाई देती अवश्य है, लेकिन जनता की नजरों से उतरी हुई दिखाई देती है, क्योंकि आतंकवाद के खिलाफ बस खीसें निपोरने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला..। ये समझना अब जरुरी है कि मजाक नहीं है आतंकवाद का खात्मा।
बात क्या थी कि डर गए साहब।
आप अब भी हमारे सर पर हैं,
सिर्फ नजरों से उतर गए साहब।। ”
स्व. जय प्रकाश बागी (वाराणसी) की उपरोक्त पंक्तियों को व्यक्ति, समूह, समुदाय, समाज, देश एवं राष्ट्र अथवा किन्ही अन्य संदर्भों के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा सकता है। प्रासंगिक है कि नववर्ष 2009 के पहले दिन से ही जम्मू कश्मीर के मेंढर में आतंकवादियों द्वारा बंकरों से आतंक का आग उगलना। कारगिल-2 की पुनरावृत्ति का एक कुत्सित प्रयास जारी है। 26/11 की आतंकवादी घटना ने संपूर्ण देश को हिलाकर रख दिया है। इसमें पाकिस्तान की घिनौनी भूमिका सिद्ध होने के बावजूद उसकी बेशर्मी और बेहयाई से सारी दुनिया हतप्रभ है। अंतरराष्ट्रीय दबावों को ताक पर रखते हुए पाकिस्तान अपनी फौज को भारतीय सीमाओं पर तैनात कर उल्टा चोर कोतवाल को डांटे कहावत को चरितार्थ करने पर तुला है। वर्तमान भारतीय सरकार अपनी एड़ी चोटी एक करके भारतीय जनता के समक्ष अपनी विश्वसनीयता का परचम लहराने पर आमादा अवश्य दीखती है किन्तु उसके द्वारा पाकिस्तान को मजबूर कर अपना दोष कबूल कर गुनहगारों को दंडित करा पाना संदेहास्पद ही दीखता है। चुनावी वर्ष में कांग्रेस की गिरती हुई साख को रोकने का चमत्कारिक प्रयास संभव नहीं दीखता।
मेरी समझ में इतने विशाल लोकतांत्रिक देश को प्रगति और विकास के मार्ग पर ले जाने अथवा किसी भी संगीन समस्या से निजात दिलाने से पूर्व देश के प्रत्येक नागरिक और नागरिकों की सुरक्षा की गारंटी लेने वाली सरकार का नैतिक दायित्व बनता है कि वो आत्मनिरीक्षण करे और अपने दोष को देखे कि क्या वो भ्रष्टाचार के विनाश के अभाव में देश के समुचित विकास हेतु आतंकवाद समाप्त करवा पाने में सक्षम है ?
जी कत्तई नहीं! हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार का जिस कदर प्रवेश हो चुका है, उससे समस्याओं से निजात पाना बड़ा मुश्किल है। भ्रष्टाचार देश की सभी समस्याओं की जड़ में है। आतंकवाद का भयानक स्वरुप भी उसी भ्रष्टाचार के कारण है क्योंकि हमारी सरकारें भ्रष्टाचार की पूरी गिरफ्त में हैं। वर्तमान सरकार भी उसका अपवाद नहीं है। आतंकवाद का घिनौना खेल तब तक चलता रहेगा, जब तक राजनेताओं द्वारा देश में कुर्सी पाने और देश पर राज करने में भ्रष्टाचार का खेल खेला जाता रहेगा। यकीन मानिए, बगैर भ्रष्टाचार मिटाए आतंकवाद नहीं मिटाया जा सकता और न तो गरीबी ही मिटाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट की मानें तो सच है कि देश भगवान भरोसे चल रहा है। पिस तो रही है आम जनता, भ्रष्टाचारी फूल-फल रहा है। सरकार जनता के सिर पर उठी हुई दिखाई देती अवश्य है, लेकिन जनता की नजरों से उतरी हुई दिखाई देती है, क्योंकि आतंकवाद के खिलाफ बस खीसें निपोरने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला..। ये समझना अब जरुरी है कि मजाक नहीं है आतंकवाद का खात्मा।
Saturday, January 3, 2009
नगर विकास मंत्री, उत्तर प्रदेश को जमानियां की खुली चिठ्ठी
सेवा में,
नगर विकास मंत्री, उत्तर प्रदेश
विषय - तिलक पुस्तकालय पर नगरपालिका का कब्जा
महोदय,
गाजीपुर जनपद की एक तहसील है ज़मानियां। इसे जिला बनाने की कोशिशें भी चल रही हैं। लेकिन आजादी के 60 साल बाद भी विकास की दौड़ में यह अप्रत्याशित रूप से पीछे है। यूं तो तहसील का पूरा इलाका ही कई तरह की जनसुविधाओँ से वंचित है। लेकिन मैं जिस आबादी की आजादी के छिन जाने की चर्चा कर रहा हूं, वह श्रीमान जी के अधिकार क्षेत्र से ही संबंधित है। वर्तमान सरकार से अपेक्षा है कि इस विषय की गंभीरता से जांच कराकर समुचित और त्वरित कार्रवाई करे ताकि स्थानीय नागरिकों के प्रति न्याय हो सके।
ज़मानियां तहसील मुख्यालय के ठीक पीछे ज़मानियां कस्बा है, जिसे अब नगरपालिका परिषद का दर्जा भी मिल गया है। उससे पहले यह एक छोटी-सी टाउन एरिया थी। तब नगर में पुस्तकालय नाम की कोई संस्था नहीं थी। लगभग दो दशक पूर्व ज़मानियां के तत्कालीन एस.डी.एम. श्री मुक्तेश मोहन मिश्र ने जनता की पुरजोर मांग पर अपने प्रयासों और राज्य सरकार के सहयोग से नगर में एक पुस्तकालय-भवन का निर्माण तहसील परिसर से लगी जमीन में कराया। उक्त तिलक पुस्तकालय का विधिवत शिलान्यास, उद्घाटन और लोकार्पण समपन्न हुआ। पुस्तकालय भवन की बाहरी दीवार पर काले-चमकीले पत्थर पर अँकित नाम-तिथि आज भी साक्ष्य के रूप में मौजूद हैं। पुस्तकालय के लिए कुछ पुस्तकें और अखबार-मैगजीन भी मंगाए गए। पुस्तकालय संचालन का कार्य नगरपालिका परिषद में कार्यरत कर्मचारियों के सुपुर्द किया गया। तिलक पुस्तकालय - वाचनालय कक्ष नगर एवं आम जनता के लिए खोल दिया गया। पढ़ने वालों की संख्या बढ़ती रही। इसी दौरान एस.डी.एम. श्री मुक्तेश मोहन मिश्र का स्थानांतरण हो गया।
उस समय नगरपालिका परिषद का कार्यालय इस पुस्तकालय से लगभग तीन फर्लांग की दूरी पर पश्चिम में ज़मानियां कस्बे के कंकड़वा घाट पर स्थित था। मगर एक दिन अचानक तत्कालीन नगरपालिका चेयरमैन के अदूरदर्शी दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय से तिलक पुस्तकालय के नवनिर्मित भवन पर गाज गिर गई। तिलक पुस्तकालय हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। नगरपालिका ने आक्रमण की तर्ज पर उस भवन पर अवैध रूप से अतिक्रमण कर लिया। ज़मानियां नगरपालिका परिषद का पूरा ताम-झाम तिलक पुस्तकालय नामक भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। स्थानीय लोगों के विरोध को दरकिनार कर प्रशासन भी चुप्पी साधे रहा और वह चुप्पी आज तक बरकरार है। इस दौरान दर्जनों एस.डी.एम. आए और गए, मगर किसी ने अपने प्रशासनिक दायित्वों का निर्वाह नहीं किया। गौरतलब है कि तब तक कई बार नगरपालिका चुनाव हुए। चेयरमैन भी बदलते रहे, मगर किसी ने भी इस समस्या के समाधान में कोई रूचि नहीं दिखाई। परिणामस्वरूप तिलक पुस्तकालय आज तक अवैध कब्जे की गिरफ्त में है।
ज़मानियां का उक्त तिलक पुस्तकालय नगरपालिका ज़मानियां के साजिशपूर्ण अवैध अतिक्रमण का आज तक शिकार है। नगरीय चुनावों के पूर्व हर बार चुनावों में हिस्सा लेने वाले सभी प्रत्याशी तिलक पुस्तकालय की पुनर्स्थापना का आश्वासन देते रहे हैं किंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात। इस प्रकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाली ज़मानियां नगरपालिका न केवल लोकतंत्रीय कानूनी की धज्जियां उड़ा रही हैं वरन सरकार, शासन-प्रशासन की भरपूर खिल्ली भी उड़ा रही है। नगरपालिका परिषद ज़मानियां के इस अराजकतापूर्ण रवैये पर अगर शीघ्रातिशीघ्र अंकुश न लगाया गया तो स्थानीय प्रबुद्ध वर्ग, बुद्धिजीवियों और युवकों की भावनाओं को जबरदस्त ठेस पहुंचेगी। उल्लेखनीय पहलू यह है कि वर्तमान नगरपालिका परिषद अध्यक्ष आये दिन तिलक पुस्तकालय को फिर से चालू करने और नगरपालिका के अवैध कब्जे को हटाए जाने का मौखिक आश्वासन तो दे देते हैं मगर लंबे समय से उसे क्रियान्वित न करने की उनकी मंशा हास्यास्पद लगने लगी है। साथ ही यह अति पिछड़े नगर की अपेक्षाओं पर पानी फेर रही है।
इसलिए क्षोभ के साथ इस खुली चिट्ठी के माध्यम से अनुरोध करना है कि सरकार सीधे हस्तक्षेप करते हुए शीघ्र न्यायोचित कदम उठाये ताकि आम आदमी को न्याय मिल सके। पूर्ण विश्वास है कि ज़मानियां नगर का अति संवेदनशील मुद्दा सरकार के ठंडे बस्ते में नहीं जाएगा। जनहित में आपकी त्वरित कार्रवाई की अपेक्षा के साथ –
कुमार शैलेन्द्र
संयोजक
भगवान परशुराम जयंती महोत्सव परिषद, ज़मानियां
नगर विकास मंत्री, उत्तर प्रदेश
विषय - तिलक पुस्तकालय पर नगरपालिका का कब्जा
महोदय,
गाजीपुर जनपद की एक तहसील है ज़मानियां। इसे जिला बनाने की कोशिशें भी चल रही हैं। लेकिन आजादी के 60 साल बाद भी विकास की दौड़ में यह अप्रत्याशित रूप से पीछे है। यूं तो तहसील का पूरा इलाका ही कई तरह की जनसुविधाओँ से वंचित है। लेकिन मैं जिस आबादी की आजादी के छिन जाने की चर्चा कर रहा हूं, वह श्रीमान जी के अधिकार क्षेत्र से ही संबंधित है। वर्तमान सरकार से अपेक्षा है कि इस विषय की गंभीरता से जांच कराकर समुचित और त्वरित कार्रवाई करे ताकि स्थानीय नागरिकों के प्रति न्याय हो सके।
ज़मानियां तहसील मुख्यालय के ठीक पीछे ज़मानियां कस्बा है, जिसे अब नगरपालिका परिषद का दर्जा भी मिल गया है। उससे पहले यह एक छोटी-सी टाउन एरिया थी। तब नगर में पुस्तकालय नाम की कोई संस्था नहीं थी। लगभग दो दशक पूर्व ज़मानियां के तत्कालीन एस.डी.एम. श्री मुक्तेश मोहन मिश्र ने जनता की पुरजोर मांग पर अपने प्रयासों और राज्य सरकार के सहयोग से नगर में एक पुस्तकालय-भवन का निर्माण तहसील परिसर से लगी जमीन में कराया। उक्त तिलक पुस्तकालय का विधिवत शिलान्यास, उद्घाटन और लोकार्पण समपन्न हुआ। पुस्तकालय भवन की बाहरी दीवार पर काले-चमकीले पत्थर पर अँकित नाम-तिथि आज भी साक्ष्य के रूप में मौजूद हैं। पुस्तकालय के लिए कुछ पुस्तकें और अखबार-मैगजीन भी मंगाए गए। पुस्तकालय संचालन का कार्य नगरपालिका परिषद में कार्यरत कर्मचारियों के सुपुर्द किया गया। तिलक पुस्तकालय - वाचनालय कक्ष नगर एवं आम जनता के लिए खोल दिया गया। पढ़ने वालों की संख्या बढ़ती रही। इसी दौरान एस.डी.एम. श्री मुक्तेश मोहन मिश्र का स्थानांतरण हो गया।
उस समय नगरपालिका परिषद का कार्यालय इस पुस्तकालय से लगभग तीन फर्लांग की दूरी पर पश्चिम में ज़मानियां कस्बे के कंकड़वा घाट पर स्थित था। मगर एक दिन अचानक तत्कालीन नगरपालिका चेयरमैन के अदूरदर्शी दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय से तिलक पुस्तकालय के नवनिर्मित भवन पर गाज गिर गई। तिलक पुस्तकालय हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। नगरपालिका ने आक्रमण की तर्ज पर उस भवन पर अवैध रूप से अतिक्रमण कर लिया। ज़मानियां नगरपालिका परिषद का पूरा ताम-झाम तिलक पुस्तकालय नामक भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। स्थानीय लोगों के विरोध को दरकिनार कर प्रशासन भी चुप्पी साधे रहा और वह चुप्पी आज तक बरकरार है। इस दौरान दर्जनों एस.डी.एम. आए और गए, मगर किसी ने अपने प्रशासनिक दायित्वों का निर्वाह नहीं किया। गौरतलब है कि तब तक कई बार नगरपालिका चुनाव हुए। चेयरमैन भी बदलते रहे, मगर किसी ने भी इस समस्या के समाधान में कोई रूचि नहीं दिखाई। परिणामस्वरूप तिलक पुस्तकालय आज तक अवैध कब्जे की गिरफ्त में है।
ज़मानियां का उक्त तिलक पुस्तकालय नगरपालिका ज़मानियां के साजिशपूर्ण अवैध अतिक्रमण का आज तक शिकार है। नगरीय चुनावों के पूर्व हर बार चुनावों में हिस्सा लेने वाले सभी प्रत्याशी तिलक पुस्तकालय की पुनर्स्थापना का आश्वासन देते रहे हैं किंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात। इस प्रकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाली ज़मानियां नगरपालिका न केवल लोकतंत्रीय कानूनी की धज्जियां उड़ा रही हैं वरन सरकार, शासन-प्रशासन की भरपूर खिल्ली भी उड़ा रही है। नगरपालिका परिषद ज़मानियां के इस अराजकतापूर्ण रवैये पर अगर शीघ्रातिशीघ्र अंकुश न लगाया गया तो स्थानीय प्रबुद्ध वर्ग, बुद्धिजीवियों और युवकों की भावनाओं को जबरदस्त ठेस पहुंचेगी। उल्लेखनीय पहलू यह है कि वर्तमान नगरपालिका परिषद अध्यक्ष आये दिन तिलक पुस्तकालय को फिर से चालू करने और नगरपालिका के अवैध कब्जे को हटाए जाने का मौखिक आश्वासन तो दे देते हैं मगर लंबे समय से उसे क्रियान्वित न करने की उनकी मंशा हास्यास्पद लगने लगी है। साथ ही यह अति पिछड़े नगर की अपेक्षाओं पर पानी फेर रही है।
इसलिए क्षोभ के साथ इस खुली चिट्ठी के माध्यम से अनुरोध करना है कि सरकार सीधे हस्तक्षेप करते हुए शीघ्र न्यायोचित कदम उठाये ताकि आम आदमी को न्याय मिल सके। पूर्ण विश्वास है कि ज़मानियां नगर का अति संवेदनशील मुद्दा सरकार के ठंडे बस्ते में नहीं जाएगा। जनहित में आपकी त्वरित कार्रवाई की अपेक्षा के साथ –
कुमार शैलेन्द्र
संयोजक
भगवान परशुराम जयंती महोत्सव परिषद, ज़मानियां
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