Wednesday, January 7, 2009

क्योंकि सज्जाद मीर दीपक चौरसिया नहीं हैं...उर्फ बेनकाब पाक मीडिया !

स्टार न्यूज़ के पत्रकार दीपक चौरसिया से आज ही पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार सज्जाद मीर से हो रही टेलीफोन वार्ता सुनी, विषय था - एनएसए महमूद अली दुर्रानी को पाक के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी द्वारा बर्खास्त किया जाना। उन्होंने भारतीय मीडिया से मुंबई के आतंकी अजमल आमिर कसाब के पाकिस्तानी नागरिक होने की पूरी संभावना जताई थी। भारत के कूटनीतिक कोशिशों की कामयाबी से दुनिया के सामने बेपर्दा और बेबस पाकिस्तान सरकार और आतंकी मानसिकता से ग्रस्त पाक जनता इतनी तिलमिलाई हुई है कि आम और खास का फर्क साफ नजर आने लगा है। दीपक चौरसिया के सवालों के जवाब में निष्पक्ष और सम्मानित कहे जाने वाले पाकिस्तान के तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार सज्जाद मीर की झुंझलाहट भरी भाषा से साफ लग रहा था कि स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के नाम को कलंकित करने वाले ऐसे पत्रकार पाकिस्तान में वास्तविक लोकतंत्र कभी स्थापित नहीं होने देंगे। ऐसे में पाकिस्तान के चौथे स्तंभ की भूमिका मात्र हास्यास्पद ही नहीं बल्कि पत्रकार बिरादरी की सोच को शर्मसार करने वाली है, जिसे पत्रकारिता जगत का सामान्य शिष्टाचार तक नहीं पता हो। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय, जांच अधिकारियों और सूचना मंत्री शेरी रहमान की स्वीकारोक्ति के बावजूद किसी पत्रकार का ऐसा अनर्गल प्रलाप पाकिस्तान की पत्रकारिता पर ढेर सारे सवाल खड़े करता है। सज्जाद मीर के पूर्वाग्रहपूर्ण बयानों से पाक की घृणित मानसिकता उजागर होती है। उनका सफेद झूठ पत्रकारिता पर काला धब्बा स्टैंप कर देता है, जब वह यह कहते हों कि ........पता नहीं कसाब को नेपाल से पकड़ा गया हो। यहां तक कि वह पत्रकार दीपक चौरसिया से एक अत्यंत तुच्छ आदमी की तरह तू-तू मैं-मैं पर उतारु हो जाए और कहे कि.....आप वार मांगरिंग कम करिए....और इसके बाद फोन बीच में ही पटक कर रख देता हो। जनाब, इससे साफ है आतंकवाद का समर्थक पाकिस्तान का चौथा स्तंभ भी अपनी असंयमित भाषा के प्रलोभन से आग में सिर्फ घी डालने का ही काम नहीं कर रहा, बल्कि अनजाने में ही पाक को आग में झोंक रहा है। साथ ही पत्रकारिता की पवित्रता को भी कलंकित कर रहा है। लानत है पाक के ऐसे नापाक चौथे स्तंभ पर। अगर ऐसा ही रहा तो पाकिस्तान में स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना में तो सदियां गुजर जाएंगी।

2 comments:

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

किससे क्या चाहते शैलेन्द्रजी, आप बङे ही वो हैं.
मक्कारी-दुष्टता-झूठ, ये पाकिस्तानी वो हैं.
पाकिस्तानी वो हैं, जिनका पन्थ सिखाता हिंसा.
पिटता हिन्दुस्थान,पकङ के बैठा वही अहिंसा.
कह साधक कविराय, बात अब होगी किससे?
आप बङे ही वो शैलेन्द्रजी, क्या चाहते किससे!

sushant jha said...

बेहतरीन पोस्ट, हम पाकिस्तान की मीडीया से भी बहुत उम्मीद पाल नहीं सकते, हां दूसरे स्तंभों से थोड़ा ज्यादा मजबूत जरुर दिखता है। हलांकि इस पाकिस्तानी मीडीया के कई रुप हैं, कभी तो यह कसाब के गांव का स्टिंग करता है तो कभी मुम्बई हमलों को आएसएस का कृत्य बताता है। खैर,एक अच्छे पोस्ट के लिए आपको बधाई।