Sunday, March 29, 2009

आडवाणी की चुनौती

अमेरिकन शासन-पद्धति के प्रभाव से ही सही मगर बीजेपी के पीएम-इन-वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी ने दूरदर्शन पर कांग्रेस को राष्ट्रीय बहस में शामिल होने की चुनौती देकर देश में स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना के निमित्त एक स्वस्थ एवं सार्थक पहल की है। लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले देश के लाखों प्रबुद्ध मतदाताओं द्वारा ऐसी किसी भी पहल का स्वागत होना चाहिए जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना का स्वस्थ वातावरण तैयार होता हो। बात यदि अच्छी है तो उसका समर्थन करना भी राष्ट्रहित है।
सिर्फ राजनीतिक पूर्वाग्रहों के चलते ऐसे सार्थक मुद्दों का विरोध बचकानापन है। इस बात में कोई बुराई नहीं है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर राष्ट्रीय दलों की विचारधाराएं बहस के जरिए आम जनता तक पहुंचे। ऐसे भोंडे तर्क प्रस्तुत करना कि बहुदलीय व्यवस्था वाले लोकतांत्रिक शासन-पद्धति में ऐसी बहस अव्यावहारिक है, यह तो सिर्फ भीड़तंत्र को बेवकूफ बनाना है। राजनैतिक दलों को अपनी नीतियों और एजेंडों को लागू कराने की स्पष्ट वचनबद्धता और जनता को विश्वास में लेने का यह सर्वोत्तम तरीका है। विश्वास करना चाहिए कि लोकतंत्र के प्रति आस्था और जन-जागृति की कोई भी सार्थक पहल देश को तीव्र विकास के पथ पर अग्रसर करेगी। साथ ही वैश्विक मंच पर भारत राष्ट्र की छवि भी निखरेगी। मेरा मानना है कि यह पहले देश की जनता की आकांक्षाओं के अनुरुप है। इस पहल के विरुद्ध उभरते स्वर एकांगी और पूर्वाग्रह के सिवा कुछ भी नहीं।

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