Saturday, June 28, 2008
Tuesday, June 24, 2008
'धूप लिफाफे में' का विमोचन संपन्न



बाबूजी के गीत संग्रह धूप लिफाफे में का विमोचन 22 जून को दोपहर 2 बजे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में हुआ। इस किताब के विमोचन के मौके पर जाने माने समालोचक मैनेजर पांडे, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक मधुकर उपाध्याय, प्रख्यात भाषाविद् हेमंत जोशी, जाने माने कवि एवं चित्रकार विज्ञान व्रत, साहित्यकार अनिल जोशी एवं सामाजिक कार्यकर्ता चैतन्य प्रकाश मौजूद रहे। साथ ही दर्शक दीर्घा में साहित्य और पत्रकारिता जगत के सजग प्रहरी मौजूद रहे....।
-विवेक सत्य मित्रम्
Friday, June 20, 2008
स्मृति शेषः स्वर्गीय कुबेरनाथ राय
शत अश्वमेधों की यही धरती
जहां से चक्रमण करती हुई
गंगा पुनः उत्तर को चलती है
मगर थोड़ी-सी सांस लेती है
जहां 'धनुर्वेद का मर्मज्ञ'
फरसा हाथ लेकर
काल-गति से दौड़ता है।
वहीं पर द्रोण प्रत्यंचा संभाले
वाण से पाताल-जल भी फोड़ता है।
वहीं पर ध्यानावस्थित इक 'बटुक'
'बैकुंठ' का करता सृजन है,
जो अपना प्राण प्रण संकल्प है
तन मन है, पूरा धन है,
हमारी आस्था श्रद्धा जिसे करती नमन है।
उसी की अर्चना में
धाम की महिमा सुनाता हूं
उसी श्री नाम की गरिमा गिनाता हूं,
चलो प्रासाद में खोजें कोई कुबेर
जहां पर एक शिल्पी
मौन तप की साधना में रत
सृजन की मोरपंखी तूलिका से
चिरंतन संस्कृति के कोटरों में
इन्द्रधनुषी कल्पना के रंग
इतना भर रहा है
हमारी प्रकृति की संवेदना
होकर तरंगित ढूंढती है ललित लहरों को,
हमारा विरल-विह्वल मन
हिरन-सा ढूंढता है गंध कस्तूरी,
यहीं से बालुका पर
दौड़ता-सा वह हांफता
'मतसा' पहुंचता है
वहीं पर आम्रकुंजों में
तृषा की 'नीलकंठी'
भोजपत्रों पर प्रणय के गीत लिखती है
'अरे पूरब के परदेसी
तू आ जा...कामरुपों की नजर से बच
तू मेरी भंगिमा का भाव पढ़
बोल वह भाषा कि
भारत के हृदय के सिन्धु में
निरंतर चल रहा मंथन',
हमारी आंख खुलती या नहीं खुलती-
हमें लगता हमारा कवि अकेले
पी रहा होता है नीला विष
सुधा का कुम्भ हमको कर समर्पित
हमें बस कुम्भ का अमृत पता है।
जो सत्साहित्य के संपत्ति की गठरी
किसी दधीचि की ठठरी
जिसे ले हम 'किरातों की नदी' में
'चन्द्रमधु' स्नान करके
अमरफल का पान करके
एक आदिम स्वर्ग में है वास करते
सहस्त्रार्जुन सरीखा पीढ़ियों का नाश करते
एक इच्छाधेनु खूंटे से बंधी है-
हमारी शून्यता-
साहित्य के लालित्य से कैसे भरेगी?
मनीषी के हृदय में
त्रासदी की लौ भभकती है
पता है? क्रौंच-वध का तीर
किसके जिस्म को
छलनी किया है ? वही आराध्य मेरा।
विश्वामित्र ने
विश्वासपूर्वक कुछ गढ़ा था
जहां कुछ पीढ़ियों ने कुछ
औ' किसी ने कुछ का कुछ पढ़ा था।
हमारी गहन से होती गहनतम रिक्तियों में
हमारी सघन से होती सघनतम वृत्तियों में
विरल-सा प्रेरणा का
आज किंचित पारदर्शी अक्स उभरता है,
हमारी जिंदगी में
इन्द्रधनुषी रंग निश्चित जो भी भरता है
वही मानव, महामानव
नया भारत हृदय में पालता है।
उसी के नाम अक्षत-पुष्प लेकर हम खड़े हैं
चलाकर चल दिया उसने
उसी संकल्प पर अनवरत चलते रहेंगे।
एक छोटी वर्तिका में
सूर्य की आभा लिए जलते रहेंगे।
वही कुबेर का प्रण था तो उसके हम हैं अटल प्रण,
चलें हम उस मनीषी का करें
हर बार अभिनमन।
Sunday, June 15, 2008
ज़मानियाँ: एक विहंगम दृष्टि
(ज़माने की तेज़ रफ़्तार में भी ज़मानियाँ पर कुछ उड़ती नज़रें देखकर लगा कि उड़ती नज़र को टिकाने के लिए हमें अतीत के झरोखों में झाँकना ही होगा जिससे ज़मानियाँ के धार्मिक, पौराणिक, भौगोलिक, पुरातात्विक, सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक स्वरूप को देखकर उसका वर्तमान संदर्भों में सही मूल्यांकन किया जाय। ज़मानियाँ ज़माने की नज़रों में ज़माने से कितना आगे या कितना पीछे है यह तो ज़माना ही तय करेगा मगर हम ज़मानियाँ के कुछ तथ्यों और सूचनाओं को एकमुश्त शब्दचित्रों के माध्यम से परोसने के फर्ज़ का निर्वाह कर सकते हैं।)
मुगलसराय-हावड़ा रेलमार्ग पर लगभग
गंगा तट पर अवस्थित अत्यंत प्राचीन नगर जमदग्निपुरी...जहाँ माता रेणुका की कोंख से पाँचवें पुत्र के रूप में भगवान परशुराम का जन्म हुआ...(‘कल्याण’ के एक पुराने अंक के अनुसार)..जी हाँ, यही है भगवान परशुराम जन्मभूमि....(हाँलाकि उनके जन्म-स्थान को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है)...उल्लेखनीय है कि निकटवर्ती राजा गाधि की नगरी गाधिपुरी में महर्षि विश्वामित्र का जन्म हुआ था। अपनी प्रबल आस्था के चलते सकलडीहा के राजा वत्स सिंह ने हरपुर नामक स्थान में लगभग 250 वर्षों पूर्व भगवान परशुराम का एक मंदिर स्थापित करवाया जहाँ आज भी अक्षय तृतीया को विशाल जनसमुदाय परशुराम जयंती महोत्सव में हिस्सा लेता है क्योंकि ज़मानियाँ को एक पवित्र तीर्थ-स्थान की मान्यता प्राप्त है।
- ग़ौरतलब है कि गंगोत्री से गंगासागर तक के बीच सिर्फ ज़मानियाँ में ही गंगा का जलप्रवाह सीधे उत्तर की ओर है। चक्रमण करती हुई गंगा जिस स्थान से उत्तराभिमुख होती हैं उस स्थान को ‘चक्का बांध’ कहा जाता है। एकल उत्तर वाहिनी गंगा का एक अलग धार्मिक महत्व माना जाता है।
- बौद्ध धर्मावलंबी सम्राट अशोक का शिलालेख युक्त स्तंभ ज़मानियाँ के लठिया ग्राम में स्थित है। इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं की दृष्टि में इस स्तंभ का उतना ही महत्व है जितना सारनाथ (वाराणसी) के अशोक स्तंभ का। इसी स्थान पर प्रति वर्ष 2 फरवरी को लाखों देशी-विदेशी बौद्ध-मतावलंबियों की उपस्थिति में लठिया महोत्सव का आयोजन होता है जो कई दिनों तक चलता है।
- एक कालखंड ऐसा भी था जब गहरवार वंश के प्रतापी राजा मदनचंद ने इसी जमदग्निपुरी को अपनी अस्थाई राजधानी बनाया था....जिसे बनारस के समतुल्य खड़ा करने की दिशा में राजा ने इसका नामकरण ‘मदन बनारस’ कर दिया। कुछ लोगों की मान्यता है कि चेरि राजाओं ने इसका नाम मदन बनारस रखा। मदनपुरा नाम का गाँव बिल्कुल ज़मानियाँ से सटा हुआ है। मदन बनारस जो ज़मानियाँ का पुराना नाम है वह यहाँ के भू-राजस्व अभिलेखों में अब भी मिलता है।
- ‘बाबरनामा’ के अनुसार अपनी विजययात्राओं के दौरान बाबर जमदग्निपुरी अर्थात् मदन बनारस के गंगा किनारे अपनी सैनिक छावनी डाले हुए था। उस समय ज़मानियाँ ‘ज़मानियाँ’ नहीं था।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी ज़मानियाँ-गाज़ीपुर अंचल का भ्रमण किया था और वह यहाँ के पराक्रमी और बहादुर लोगों से मिला था। उसे लगा कि यह पराक्रमी और शूरवीरों की धरती है...इसलिए उसने इसका अपनी भाषा में नामकरण कर दिया...मतलब ‘चेन-चू’....अर्थात् यही गाज़ीपुर-ज़मानियाँ।
- ‘चंद्रकांता’ और ‘भूतनाथ’ जैसे तिलिस्मी साहित्य के रचनाकार बाबू देवकीनन्दन खत्री की जन्म-भूमि ज़मानियाँ ही है। जो बाद में संभवत: अन्यत्र चले गए। जिन तिलिस्मी सुरंगों की चर्चा उनकी पुस्तक में है वे तिलिस्मी सुरंगें ज़मानियाँ से होकर कमालपुर होते हुए विजयगढ़ के किले तक जाती थीं।
- भारत प्रसिद्ध माँ कामाख्या मंदिर इसी अंचल के ग्राम गहमर में स्थित है जिसे फतेहपुर सीकरी से मुग़लों द्वारा निर्वासित सीकरवार राजपूतों ने स्थापित कराया था....जहाँ प्रत्येक नवरात्र और सावन महीने में अभूतपूर्व धार्मिक आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ता है। उक्त स्थान सरकार के पर्यटन नक्शे पर दर्ज है।
- ज़मानियाँ क़स्बे में उदासीन पंथ का एक अखाड़ा आज भी मौजूद है जहाँ सिख पंथ के गुरु गोविंदसिंह की पत्नी ने गुरुमुखी लिपि में एक हुक्मनामा लिख रखा था। हुक्मनामा आज तक सुरक्षित है।
- ज़मानियाँ अंचल का ग्राम बारा मुग़ल बादशाह हुमायूँ और शेरशाह के ऐतिहासिक चौसा युद्ध का साक्षी है जहाँ शेरशाह ने हुमायूँ को पराजित कर दिया था और हुमायूँ भाग खड़ा हुआ।
- अलीकुल जमन, जो मुग़लों का सिपहसालार था वह तत्कालीन मदन बनारस (जमदग्निपुरी) में बस गया। बाद में इसी मदन बनारस का नाम बदल कर ज़मन खाँ के नाम पर ज़मानियाँ कर दिया गया।
- ज़मानियाँ क्षेत्र का दिलदारनगर गाँव पौराणिक किंवदन्तियाँ समेटे है जहाँ नल-दमयन्ती का एक विशाल तालाब और कोट (ऊंचा टीला) आज तक सुरक्षित है।
- लॉर्ड कार्नवालिस ने ज़मानियाँ के ठीक सामने गंगा के उस पार जीवन की अंतिम साँस ली। उस स्थान पर लॉर्ड कार्नवालिस का निर्मित मक़बरा आज भी पर्यटकों के लिए कौतूहल का विषय है।
- स्वामी विवेकानन्द इसी गंगा तट पर अवस्थित महान संत पवहारी बाबा के आश्रम में पधारे थे। शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के पूर्व उन्होंने उस महान संत का आशीर्वाद प्राप्त किया था।
- विश्व कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर की साहित्य-सृजन यात्रा का एक अविस्मरणीय पड़ाव रहा है ज़मानियाँ-गाज़ीपुर...जहाँ वे ग़ुलाबों की ख़ुशबू से बंधे रहे काफी दिनों तक...और उन्होंने एक पुस्तक ‘मानसी’ की रचना कर डाली। गाज़ीपुर की स्मृतियाँ उनके मानस-पटल पर चिरस्थायी बन गईं।
- स्थानीय विद्वान पंडित रामनारायण मिश्र द्वारा संस्कृत में लिखी पुस्तक ‘जमदग्नि पंच तीर्थ महात्म्य’ ज़मानियाँ के धार्मिक एवं सांस्कृतिक गौरव का एक संक्षिप्त दस्तावेज़ है। यह पुस्तक अत्यंत लोकप्रिय हुई जिसका हिंदी अनुवाद जुनेदपुर निवासी पंडित राजनारायण शास्त्री ने किया।
- सइतापट्टी के नागा बाबा और चोचकपुर के मौनी बाबा का धाम ठीक ज़मानियाँ घाट के सामने पड़ता है। ये दोनों स्थान आज भी लोगों की श्रद्धा के केंद्र में हैं।
- संपूर्ण ज़मानियाँ क्षेत्र मुग़लकालीन धर्मांतरण से काफी प्रभावित रहा और इस्लाम क़बूल करने वालों की संख्या बढ़ी। परिणामस्वरूप एक क्षेत्र विशेष के जाति विशेष ने इस्लाम क़बूल कर अपने को मुसलमान घोषित कर लिया....उस क्षेत्र को ‘कमसार’ कहा जाता है। इसी अवधि में नवाबों और ज़मींदार घरानों की भी उत्पत्ति हुई। ज़मानियाँ नगर के प्राचीन खंडहर इस बात के सबूत हैं।
- आज़ादी के तुरंत बाद गाज़ीपुर के लोकसभा सदस्य विश्वनाथ सिंह ने संसद में इस अंचल की ग़रीबी का चित्रण कर प्रधानमंत्री पं. नेहरु को भी भावुक कर दिया था।
- पवित्र गंगा के तट पर बसे इस प्राचीन नगर का बलुआघाट सदियों से जीवन की आखिरी सांस लेने वाले लाखों (प्रतिदिन दर्जनों) के बन्धु-बान्धवों के ‘राम नाम सत्य है’ का मूक साक्षी है, साथ ही यह श्रावण मास में पूरे दिन और पूरी रात गंगाजल ले जाने वाले काँवरियों के ‘बोल-बम’ की ध्वनि से गुंजायमान होता रहता है।
- साहित्यकार गुरुभक्त सिंह ‘भक्त’ और कवि उस्मान की कर्मभूमि ज़मानियाँ उनके साहित्य-सृजन के लिए प्राण-वायु के समान रहा।
- राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के लिए ज़मानियाँ का ग्राम कूसीं एक तीर्थस्थान से कम नहीं था क्योंकि वहाँ प्रख्यात संस्कृतज्ञ पं. रामगोविंद शास्त्री से उन्हें आशीर्वाद प्राप्त करना आवश्यक लगता था।
- गोपाल राम गहमरी को उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद का सिर्फ पूर्ववर्ती ही नहीं माना जाता बल्कि उन्हें जासूसी साहित्य के जनक के रूप में भी प्रतिष्टापित किया जाता है।
- ज़मानियाँ तहसील का ग्राम गहमर संपूर्ण भारत के लिए राष्ट्रीय गौरव का विषय सिर्फ इसलिए नहीं है कि यह एशिया का सबसे बड़ा गाँव है बल्कि इसलिए भी कि इस गाँव का राष्ट्र की सेवा में बराबरी करने वाला भारत का कोई दूसरा गाँव है ही नहीं।
- प्रख्यात सितारवादक पं. रविशंकर ज़मानियाँ (ढ़ढ़नी गाँव) का मूल संबंध एक कत्थक परिवार से रहा है।
- भोजपुरी फिल्मों को दिशा देने वाले महान अभिनेता नज़ीर हुसैन किसी परिचय के मोहताज़ नहीं, मगर बताना आवश्यक है कि फिल्मों में जाने के पूर्व उसिया के उस नौजवान ने सुभाषचंद्र बोस की ‘आज़ाद हिन्द फौज़’ में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
- डॉ कपिलदेव द्विवेदी (गहमर) जिन्होंने लगभग 3 दर्जन पुस्तकें संस्कृत में लिखीं। वे गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। इन्हें भारत सरकार ने ‘पद्म विभूषण’ सम्मान से अलंकृत किया।
- ज़मानियाँ से जुड़ी तहसील मुहम्मदाबाद और सैदपुर की महाविभूतियों यथा- संत शिवनारायण, स्वामी सहजानन्द सरस्वती, डॉ मुख्तार अंसारी, डॉ राही मासूम रज़ा और उप-राष्ट्रपति माननीय हामिद अंसारी पर भी हमें गर्व है।
Saturday, June 7, 2008
लोकतंत्र के पथ पर लेटी
सोलह श्रृंगार करो।।
लाल हुई
सोने की चिड़िया,
संस्कृति की डाली,
तीली जली, धुंध उपवन में-
छद्नवेश माली,
तृण-तृण में पागल मन हर क्षण
सागर-सागर भरो।।
साजिश बर्फीली
घाटी में,
भीषण आगजनी,
लोकतंत्र के पथ पर लेटी-
सुरसा नागफनी,
फन विषधर के कुचलो, युग-
चेतन संचार करो।
पंजों में
फिर दु:शासन के
यह आंचल धानी,
छलके नयनों से करुणामय-
क्षार युक्त पानी,
गरजो पांचजन्य, प्रत्यंचा-
नव टंकार करो।
Thursday, June 5, 2008
महंगाई की आग में तेल

महंगाई ने खींच दी अबकी सबकी चूल।
मोहन-मुरली सोनिया बोने लगे बबूल।।
बोतल में जो बन्द था, राजनीति का जिन्न।
बैल मुझे आ मार ले जनता है अब खिन्न।।
दाम बढ़ाकर तेल का ले ली आफत मोल।
न्यौता पूर्ण विपक्ष को चल अब हल्ला बोल।।
डीजल औ' पेट्रोल से इतने गहरे घाव।
गली-गली ललकारती, जल्दी करो चुनाव।।
चौपटराजा राज में इतना बढ़ा अंधेर।
भेड़ बकरियां गुम हुईं कातिल हुआ गंड़ेर।।
खून, तेल से मांगती मनमोहन सरकार।
और अंतड़ियां भूख से रोतीं बुक्का फार।।
छुटभैयों जितना करो धरने औ' हड़ताल।
करवट बदले ऊँट क्या, इतना खस्ताहाल।।
देश बचाओ दोस्तों कांग्रेस कंगाल।
फिर अच्छे दिन आएंगे, होंगे मालामाल।।
दिल्ली की सरकार ने भेजा फौरन फैक्स।
मुख्यमंत्रियों तेल पर नहीं मांगना टैक्स।।
रोटी के लाले पड़े, खाली है अब ज़ेब।
गैस तेल के नाम पर होता रहा फ़रेब।।
खाद्य पदार्थों में लगी आग, आग बाज़ार।
बस्ती-बस्ती धधकती मचती हाहाकार।।
सभी चमेली चाचियां, दस जनपथ से दूर।
रोटी-सी जलने लगी, मस्त रहा तंदूर।।
तेल मूल्य की वृद्धि से इतना तो है साफ।
जनता भारत की उन्हें नहीं करेगी माफ।।
Tuesday, June 3, 2008
वर्षगांठ पर सोनचिरैया
गांठ मगर कस जायेगी,
वर्षगांठ पर सोनचिरैया
क्या-क्या बोल सुनाएगी।।
जलसे हमने जलकर देखे
जल काजल में बदल गया,
जाल संभाले मछुवारा मन
मत्स्यगंध पर फिसल गया,
आगामी सन्तति पुरखों की-
थाती ही खो जाएगी।।
पुष्पक में बैठे हैं हम सब
इन्द्रलोक में जाना है,
अग्निपरीक्षा का भय केवल
कंचन ही निखराना है,
ऊंची-ऊंची सभी उड़ानें-
नीचे ही रह जाएंगी।।
टूटी-बिखरी संज्ञाओं को
आओ क्रियापदों से जोड़ें,
संस्कार की सुप्तभूमि में
बीज विशेषण वाले छोड़ें,
वरना, व्यथा भारती मां की-
कोरी ही रह जाएगी।
काले हुए उजाले सपने

आंखों के अंत:पुर उर में-
इन्द्रधनुष-छवि वाले सपने,
पछुआई की झंझाओं ने-
प्रतिक्षण देश निकाले सपने।
लिखने को क्या नहीं लिखा है
स्वर-व्यंजन की भाषाओं में,
मन का किंतु व्याकरण उल्टा
उलझा सिर्फ तमाशाओं में,
अनुरंजन के विषदंतों से-
कुचले हैं रखवाले सपने।
विश्वामित्र हमारी संस्कृति
यज्ञ देवता के हम साधन,
बिसरे-भूले छंदों में फिर
कर जाएं विस्तृत आराघन,
केसर-कस्तूरी बरसा दे-
मेघ राशि जल वाले सपने।
चंद्रग्रहण-सी थमी झुर्रियां
मेधाओं के माथे फैलीं,
सदियों से होती आई यह
कंचन की थाती मटमैली,
सपनों में हम सपने बोते-
काले हुए उजाले सपने।
Monday, June 2, 2008
ढंको न सिन्दूरी मिट्टी से
दिन के सपने तोड़ न पाते , सोने की जंजीर को।।
सूँघ गया है साँप
केवड़े की मदमाती गंध को,
नयी टहनियाँ भूल गयी है
माटी की सौगन्ध को,
हवा हादसों को गरियाती, पुरखों की जागीर को।।
द्वार, देहरी, आँगन , घर
नित नये-नये विस्फोट हैं,
मृत अतीत में झाँक रही अब
'अलगू ' की हर चोट है,
घुसा ताजगी में बासीपन, नीबू-रस ज्यों क्षीर को।।
शंकर का विषपान
राम के गौरवमय सोपान सा,
गौतम का हर बोध-स्थल ,
बस अपने हिन्दुस्तान सा ,
ढंको न सिन्दूरी मिट्टी से , तुलसी, नानक, मीर को।।
Sunday, June 1, 2008
खरी-खोटी दोहों की जुबानी-4
मन के आंगन में जहां आतंकों की गूंज।।
चक्की में पिसते रहे बस मज़दूर-किसान।
कुर्की घर की बोलती-बाक़ी क़र्ज-लगान।।
टुक़डे-टुकड़े ज़िंदगी-क्या कहती दो-टूक।।
तोते मंडन मिश्र के, बांच रहे तकदीर।।
सुरसा के मुंह बैठता-जनता के दरबार।।
सच ने अंतिम सांस ली-कहां झूठ को आंच।।
क्रूर काल के हाथ से-सरके जैसे रेत।।
लाठी जिसकी भैंस है, बेचारा कानून।।
जनमेजय का हो रहा पानी-पानी आग।।
धुंआ-धुंआ सपने हुए, उजड़े कई सुहाग।।
जाहिर उनकी ज़िंदगी चलती बिना उसूल।।
संसद-सड़कें-कुर्सियां, सच्ची आदमखोर।।
लोकतंत्र की रीति की बेशक भली तमीज।।
ऐसी लंगड़ी सोच का, क्या होगा अल्लाह।।
बेरहम है वक़्त
भंगिमाएं प्यारकी,
आंख में अभिव्यक्ति लहरे
दर्द के संसार की।
लाजवन्ती मानकर
जो तर्जनी पीछे मुड़ी,
वह स्वयं आवृत्तियों से
भंवर-सी औचक जुड़ी,
प्रश्न चर्चामुक्त अब तो
अतिक्रमण-विस्तार की।
शीश पर बांधे कफन
इतिहास की परछाईयां,
खोजती हैं बुलबुलों के
गांव की अमराइयां,
बेरहम है वक़्त जैसे
धार हो तलवार की।
हम टंगे हैं खूंटियों पर
रेशणी बनकर कमीज,
तोड़ जाती बाजुओं तक
सीयने जिनकी तमीज,
यह ग्रहण है ज़िंदगी पर
राहु के परिवार की।