Friday, May 30, 2008

मीडिया बेलाग तो हो पर बेलगाम नहीं

'ब्लॉग्स' के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वच्छता देखकर मन आहत हुआ। मीडिया से जुड़े स्वनामधन्य पत्रकारों की आत्मश्लाघा, आरोप-प्रत्यारोप, निन्दा-भर्त्सना, चुगली-चाटुकारिता, प्रलाप-विलाप से परिपूर्ण प्रतिक्रियाएं आम आदमी के मन में 'चौथे स्तंभ' की धारणा को चकनाचूर करती हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाली जनता के मन में 'चौथे स्तंभ' के प्रति श्रेष्ठ भाव है। मगर चौथा स्तंभ क्या अपनी स्वस्थ भूमिका का निर्वहन कर पा रहा है? क्या लोकतंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के उन्मूलन के बिना गौरवशाली भारत का निर्माण संभव है। वर्तमान में इलेक्ट्रानिक मीडिया के मजबूत कन्धों की जरुरत है। उसे अन्तर्कलह से बचना होगा।.....कीचड़ उछालने से कीचड़ की सफाई नहीं हो पाएगी। अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ केवल स्वच्छंदता नहीं...गाली-गलौज नहीं होना चाहिए। आत्ममुग्धता के कलेवर में फंसी पत्रकारों की दुनिया की भाषा बेशक 'बेलाग' तो हो, पर 'बेलाग' न हो........। ब्लॉग के माध्यम से इतनी तो अपेक्षा अवश्य है कि कटुतापूर्ण वातावरण निर्मित करके न तो आपका भला हो सकता है...और न ही शेष समाज का....जिसे आप हेय समझते हैं।

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