Saturday, May 24, 2008

पापग्रहों से नज़र

-कुमार शैलेन्द्र

नागयज्ञ ने आदर्शों की
रस्म निभा ली है।
कद्रू के बेटों ने जब भी
डोर संभाली है।

नंगे संवादों ने पहने
हैं असली बाना,
अलादीन वाले चिराग का
बुझना, जल जाना,

काली करतूते हैं, जिनके-
मुंह पर लाली है।

मदराचल से मरु मंथन की
क्या उपलब्धि गिनें,
गुबरैलों की अंगुलियों में
यौवन रक्त सने,

हेमपुष्प की दाहकता ने
आग लगा ली है।

मंजिल का कुछ पता नहीं है
पथ की क्या दूरी,
उलझन कठिन, कठिनतर उससे
मेंहदी-मजबूरी,

माली ने ही नन्दन वन की
गंध चुरा ली है।

अन्तर्व्यथा समय सीपी की
मोती क्या जाने,
मान सरोवर का पांखी
निर्मलता पहचाने,

दिनकर ने कुछ पापग्रहों से
नज़र मिला ली है।।

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