-कुमार शैलेन्द्र
पाल बाँधना
छोड़ दिया है
जब से मैंने नाव में,
मची हुई है
अफरा-तफरी,
मछुआरों के गाँव में ।।
आवारागर्दी में बादल
मौसम भी
लफ्फाज हुआ,
सतरंगी खामोशी ओढ़े
सूरज
इश्क मिजाज हुआ,
आग उगलती
नालें ठहरीं,
अक्षयवट की छाँव में ।।
लुका-छिपी के
खेल-खेल में
टूटे अपने कई घरौदें,
औने-पौने
मोल भाव में
चादर के सौदे पर सौदे,
लक्ष्यवेध का
बाजारू मन,
घुटता रहा पड़ाव में ।।
तेजाबी संदेशों में गुम
हैं तकदीरें
फूलों की,
हवा हमारे घर को तोड़े
साँकल नहीं
उसूलों की,
शहतूतों पर
पलने वाले,
बिगड़ रहे अलगाव में ।।
Friday, May 23, 2008
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1 comment:
बहुत उम्दा.
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