ढीले हो जायेंगे बन्धन
गांठ मगर कस जायेगी,
वर्षगांठ पर सोनचिरैया
क्या-क्या बोल सुनाएगी।।
जलसे हमने जलकर देखे
जल काजल में बदल गया,
जाल संभाले मछुवारा मन
मत्स्यगंध पर फिसल गया,
आगामी सन्तति पुरखों की-
थाती ही खो जाएगी।।
पुष्पक में बैठे हैं हम सब
इन्द्रलोक में जाना है,
अग्निपरीक्षा का भय केवल
कंचन ही निखराना है,
ऊंची-ऊंची सभी उड़ानें-
नीचे ही रह जाएंगी।।
टूटी-बिखरी संज्ञाओं को
आओ क्रियापदों से जोड़ें,
संस्कार की सुप्तभूमि में
बीज विशेषण वाले छोड़ें,
वरना, व्यथा भारती मां की-
कोरी ही रह जाएगी।
Tuesday, June 3, 2008
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1 comment:
सुंदर! अति सुंदर!
कमाल का शब्द चित्रण हैं.
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