(ज़माने की तेज़ रफ़्तार में भी ज़मानियाँ पर कुछ उड़ती नज़रें देखकर लगा कि उड़ती नज़र को टिकाने के लिए हमें अतीत के झरोखों में झाँकना ही होगा जिससे ज़मानियाँ के धार्मिक, पौराणिक, भौगोलिक, पुरातात्विक, सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक स्वरूप को देखकर उसका वर्तमान संदर्भों में सही मूल्यांकन किया जाय। ज़मानियाँ ज़माने की नज़रों में ज़माने से कितना आगे या कितना पीछे है यह तो ज़माना ही तय करेगा मगर हम ज़मानियाँ के कुछ तथ्यों और सूचनाओं को एकमुश्त शब्दचित्रों के माध्यम से परोसने के फर्ज़ का निर्वाह कर सकते हैं।)
मुगलसराय-हावड़ा रेलमार्ग पर लगभग
गंगा तट पर अवस्थित अत्यंत प्राचीन नगर जमदग्निपुरी...जहाँ माता रेणुका की कोंख से पाँचवें पुत्र के रूप में भगवान परशुराम का जन्म हुआ...(‘कल्याण’ के एक पुराने अंक के अनुसार)..जी हाँ, यही है भगवान परशुराम जन्मभूमि....(हाँलाकि उनके जन्म-स्थान को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है)...उल्लेखनीय है कि निकटवर्ती राजा गाधि की नगरी गाधिपुरी में महर्षि विश्वामित्र का जन्म हुआ था। अपनी प्रबल आस्था के चलते सकलडीहा के राजा वत्स सिंह ने हरपुर नामक स्थान में लगभग 250 वर्षों पूर्व भगवान परशुराम का एक मंदिर स्थापित करवाया जहाँ आज भी अक्षय तृतीया को विशाल जनसमुदाय परशुराम जयंती महोत्सव में हिस्सा लेता है क्योंकि ज़मानियाँ को एक पवित्र तीर्थ-स्थान की मान्यता प्राप्त है।
- ग़ौरतलब है कि गंगोत्री से गंगासागर तक के बीच सिर्फ ज़मानियाँ में ही गंगा का जलप्रवाह सीधे उत्तर की ओर है। चक्रमण करती हुई गंगा जिस स्थान से उत्तराभिमुख होती हैं उस स्थान को ‘चक्का बांध’ कहा जाता है। एकल उत्तर वाहिनी गंगा का एक अलग धार्मिक महत्व माना जाता है।
- बौद्ध धर्मावलंबी सम्राट अशोक का शिलालेख युक्त स्तंभ ज़मानियाँ के लठिया ग्राम में स्थित है। इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं की दृष्टि में इस स्तंभ का उतना ही महत्व है जितना सारनाथ (वाराणसी) के अशोक स्तंभ का। इसी स्थान पर प्रति वर्ष 2 फरवरी को लाखों देशी-विदेशी बौद्ध-मतावलंबियों की उपस्थिति में लठिया महोत्सव का आयोजन होता है जो कई दिनों तक चलता है।
- एक कालखंड ऐसा भी था जब गहरवार वंश के प्रतापी राजा मदनचंद ने इसी जमदग्निपुरी को अपनी अस्थाई राजधानी बनाया था....जिसे बनारस के समतुल्य खड़ा करने की दिशा में राजा ने इसका नामकरण ‘मदन बनारस’ कर दिया। कुछ लोगों की मान्यता है कि चेरि राजाओं ने इसका नाम मदन बनारस रखा। मदनपुरा नाम का गाँव बिल्कुल ज़मानियाँ से सटा हुआ है। मदन बनारस जो ज़मानियाँ का पुराना नाम है वह यहाँ के भू-राजस्व अभिलेखों में अब भी मिलता है।
- ‘बाबरनामा’ के अनुसार अपनी विजययात्राओं के दौरान बाबर जमदग्निपुरी अर्थात् मदन बनारस के गंगा किनारे अपनी सैनिक छावनी डाले हुए था। उस समय ज़मानियाँ ‘ज़मानियाँ’ नहीं था।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी ज़मानियाँ-गाज़ीपुर अंचल का भ्रमण किया था और वह यहाँ के पराक्रमी और बहादुर लोगों से मिला था। उसे लगा कि यह पराक्रमी और शूरवीरों की धरती है...इसलिए उसने इसका अपनी भाषा में नामकरण कर दिया...मतलब ‘चेन-चू’....अर्थात् यही गाज़ीपुर-ज़मानियाँ।
- ‘चंद्रकांता’ और ‘भूतनाथ’ जैसे तिलिस्मी साहित्य के रचनाकार बाबू देवकीनन्दन खत्री की जन्म-भूमि ज़मानियाँ ही है। जो बाद में संभवत: अन्यत्र चले गए। जिन तिलिस्मी सुरंगों की चर्चा उनकी पुस्तक में है वे तिलिस्मी सुरंगें ज़मानियाँ से होकर कमालपुर होते हुए विजयगढ़ के किले तक जाती थीं।
- भारत प्रसिद्ध माँ कामाख्या मंदिर इसी अंचल के ग्राम गहमर में स्थित है जिसे फतेहपुर सीकरी से मुग़लों द्वारा निर्वासित सीकरवार राजपूतों ने स्थापित कराया था....जहाँ प्रत्येक नवरात्र और सावन महीने में अभूतपूर्व धार्मिक आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ता है। उक्त स्थान सरकार के पर्यटन नक्शे पर दर्ज है।
- ज़मानियाँ क़स्बे में उदासीन पंथ का एक अखाड़ा आज भी मौजूद है जहाँ सिख पंथ के गुरु गोविंदसिंह की पत्नी ने गुरुमुखी लिपि में एक हुक्मनामा लिख रखा था। हुक्मनामा आज तक सुरक्षित है।
- ज़मानियाँ अंचल का ग्राम बारा मुग़ल बादशाह हुमायूँ और शेरशाह के ऐतिहासिक चौसा युद्ध का साक्षी है जहाँ शेरशाह ने हुमायूँ को पराजित कर दिया था और हुमायूँ भाग खड़ा हुआ।
- अलीकुल जमन, जो मुग़लों का सिपहसालार था वह तत्कालीन मदन बनारस (जमदग्निपुरी) में बस गया। बाद में इसी मदन बनारस का नाम बदल कर ज़मन खाँ के नाम पर ज़मानियाँ कर दिया गया।
- ज़मानियाँ क्षेत्र का दिलदारनगर गाँव पौराणिक किंवदन्तियाँ समेटे है जहाँ नल-दमयन्ती का एक विशाल तालाब और कोट (ऊंचा टीला) आज तक सुरक्षित है।
- लॉर्ड कार्नवालिस ने ज़मानियाँ के ठीक सामने गंगा के उस पार जीवन की अंतिम साँस ली। उस स्थान पर लॉर्ड कार्नवालिस का निर्मित मक़बरा आज भी पर्यटकों के लिए कौतूहल का विषय है।
- स्वामी विवेकानन्द इसी गंगा तट पर अवस्थित महान संत पवहारी बाबा के आश्रम में पधारे थे। शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के पूर्व उन्होंने उस महान संत का आशीर्वाद प्राप्त किया था।
- विश्व कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर की साहित्य-सृजन यात्रा का एक अविस्मरणीय पड़ाव रहा है ज़मानियाँ-गाज़ीपुर...जहाँ वे ग़ुलाबों की ख़ुशबू से बंधे रहे काफी दिनों तक...और उन्होंने एक पुस्तक ‘मानसी’ की रचना कर डाली। गाज़ीपुर की स्मृतियाँ उनके मानस-पटल पर चिरस्थायी बन गईं।
- स्थानीय विद्वान पंडित रामनारायण मिश्र द्वारा संस्कृत में लिखी पुस्तक ‘जमदग्नि पंच तीर्थ महात्म्य’ ज़मानियाँ के धार्मिक एवं सांस्कृतिक गौरव का एक संक्षिप्त दस्तावेज़ है। यह पुस्तक अत्यंत लोकप्रिय हुई जिसका हिंदी अनुवाद जुनेदपुर निवासी पंडित राजनारायण शास्त्री ने किया।
- सइतापट्टी के नागा बाबा और चोचकपुर के मौनी बाबा का धाम ठीक ज़मानियाँ घाट के सामने पड़ता है। ये दोनों स्थान आज भी लोगों की श्रद्धा के केंद्र में हैं।
- संपूर्ण ज़मानियाँ क्षेत्र मुग़लकालीन धर्मांतरण से काफी प्रभावित रहा और इस्लाम क़बूल करने वालों की संख्या बढ़ी। परिणामस्वरूप एक क्षेत्र विशेष के जाति विशेष ने इस्लाम क़बूल कर अपने को मुसलमान घोषित कर लिया....उस क्षेत्र को ‘कमसार’ कहा जाता है। इसी अवधि में नवाबों और ज़मींदार घरानों की भी उत्पत्ति हुई। ज़मानियाँ नगर के प्राचीन खंडहर इस बात के सबूत हैं।
- आज़ादी के तुरंत बाद गाज़ीपुर के लोकसभा सदस्य विश्वनाथ सिंह ने संसद में इस अंचल की ग़रीबी का चित्रण कर प्रधानमंत्री पं. नेहरु को भी भावुक कर दिया था।
- पवित्र गंगा के तट पर बसे इस प्राचीन नगर का बलुआघाट सदियों से जीवन की आखिरी सांस लेने वाले लाखों (प्रतिदिन दर्जनों) के बन्धु-बान्धवों के ‘राम नाम सत्य है’ का मूक साक्षी है, साथ ही यह श्रावण मास में पूरे दिन और पूरी रात गंगाजल ले जाने वाले काँवरियों के ‘बोल-बम’ की ध्वनि से गुंजायमान होता रहता है।
- साहित्यकार गुरुभक्त सिंह ‘भक्त’ और कवि उस्मान की कर्मभूमि ज़मानियाँ उनके साहित्य-सृजन के लिए प्राण-वायु के समान रहा।
- राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के लिए ज़मानियाँ का ग्राम कूसीं एक तीर्थस्थान से कम नहीं था क्योंकि वहाँ प्रख्यात संस्कृतज्ञ पं. रामगोविंद शास्त्री से उन्हें आशीर्वाद प्राप्त करना आवश्यक लगता था।
- गोपाल राम गहमरी को उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद का सिर्फ पूर्ववर्ती ही नहीं माना जाता बल्कि उन्हें जासूसी साहित्य के जनक के रूप में भी प्रतिष्टापित किया जाता है।
- ज़मानियाँ तहसील का ग्राम गहमर संपूर्ण भारत के लिए राष्ट्रीय गौरव का विषय सिर्फ इसलिए नहीं है कि यह एशिया का सबसे बड़ा गाँव है बल्कि इसलिए भी कि इस गाँव का राष्ट्र की सेवा में बराबरी करने वाला भारत का कोई दूसरा गाँव है ही नहीं।
- प्रख्यात सितारवादक पं. रविशंकर ज़मानियाँ (ढ़ढ़नी गाँव) का मूल संबंध एक कत्थक परिवार से रहा है।
- भोजपुरी फिल्मों को दिशा देने वाले महान अभिनेता नज़ीर हुसैन किसी परिचय के मोहताज़ नहीं, मगर बताना आवश्यक है कि फिल्मों में जाने के पूर्व उसिया के उस नौजवान ने सुभाषचंद्र बोस की ‘आज़ाद हिन्द फौज़’ में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
- डॉ कपिलदेव द्विवेदी (गहमर) जिन्होंने लगभग 3 दर्जन पुस्तकें संस्कृत में लिखीं। वे गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। इन्हें भारत सरकार ने ‘पद्म विभूषण’ सम्मान से अलंकृत किया।
- ज़मानियाँ से जुड़ी तहसील मुहम्मदाबाद और सैदपुर की महाविभूतियों यथा- संत शिवनारायण, स्वामी सहजानन्द सरस्वती, डॉ मुख्तार अंसारी, डॉ राही मासूम रज़ा और उप-राष्ट्रपति माननीय हामिद अंसारी पर भी हमें गर्व है।
4 comments:
बहुत खूब
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बहुत अच्छा लिखे. जानकारी के साथ दिलचस्पी. लिखते रहिये.
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उल्टा तीर
सुन्दर पोस्ट
Bahut achchi jankari ke liye dhanyawad
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