अपने बारे में लिखना बहुत मुश्किल होता है.. बेशक जान पहचान के लिए शब्दों के अथाह संसार से हम कुछ शब्द खुद के लिए चुन लेते हैं...एक शब्द में कहूं तो एक रचनाकार हूं... लिखने पढ़ने की दुनिया का एक हिस्सा... जिसकी नजर है.. उस वक्त पर जो हर पल..हर क्षण बदलता है.. लेकिन इस बदलाव के बीच जो कुछ बनता बिगड़ता है... उसकी टीस कविता के तौर पर सामने आ जाती है.. पेशे से डिग्री कॉलेज में अंग्रेजी का व्याख्याता हूं... जिंदगी का लंबा अरसा किताबों के बीच गुजरा है...ब्लॉग से पहली बार वाकिफ हुआ हूं... इस ब्लॉग पर लिखे जा रहे गीत ...इसी नाम से प्रकाशित संग्रह से हैं...
1 comment:
ग़ज़ल को मैं कहूं ग़ज़ल मुझको कहे
कुछ वो सुने कुछ मैं सुनूँ -
तेरे दिल में कुछ राहें बने ....
दिल पे रख कर हाथ , अपनी धड़कनें सुनते रहे
इस तरह जानां तेरे साथ हम चलते रहे
आज का उत्सव ग़ज़ल के नाम
http://www.parikalpnaa.com/2013/11/blog-post_29.html
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